Friday, June 8, 2018

निगाह नीची रखो

पर्दा करो क्योंकि तुम किसी बाप का ग़ुरूर हो,

पर्दा करो क्योंकि तुम किसी भाई की ग़ैरत हो,

पर्दा करो क्योंकि तुम किसी शौहर की इज़्ज़त हो,

पर्दा करो क्योंकि तुम किसी घर की ज़ीनत हो,

पर्दा करो क्योंकि पर्दा हया का ज़ेवर है,

पर्दा करो क्योंकि पर्दे मे औरत की शान है,

पर्दा करो क्योंकि तुम कोई मामूली सामान नही हो,

बल्कि इस्लाम की शहज़ादी हो
और कोई शहज़ादी इस तरह मामूली नही
ज़िसके उपर हर किसी की निगाह उठ जाये..

👌👌👌👌👌👌👌
मर्दो के लिए.....
निगाह नीची रखो - कि तुमसे तुम्हारी माँ की तरबियत की पहचान होगी, वही माँ जिसके क़दमों में जन्नत है।

निगाह नीची रखो - कि वो भी किसी की बहन है तुम्हारी बहन की तरह।

निगाह नीची रखो - कि तुम अपनी बीवी का एतबार, वफ़ा और ग़ुरूर हो, उसकी नज़रें नीची हो जाती है जब कोई उसे ताना देता है कि "हाँ पता है,तुम्हारे शौहर तुम्हें कितना चाहते हैं ?"

निगाह नीची रखो - कि तुम्हें अल्लाह ने औरतों पर क़व्वाम( संरक्षक,यानि अच्छी तरह रक्षा करने वाला ) बनाया है।

निगाह नीची रखो - कि ये शराफ़त की अलामत है।

निगाह नीची रखो - कि हुज़ूर, खलीफ़ा और सहाबा निगाह नीची रखते थे।

निगाह नीची रखो - क्योंकि तुम कोई मामूली इंसान नहीं, मुसलमान हो, इमानवाले हो, सबसे बेहतरीन उम्मह के पैरोकार हो।

निगाह नीची रखो - कि तुम इस्लाम के शहज़ादे हो, क़ुरआन में अल्लाह ने पहले मर्दों को निगाह नीची रखने को कहा है।

निगाह नीची रखो - ताकि ग़ैर मज़हब की औरतें कहें कि ईमानवाले मर्द कितने शरीफ होते हैं। मुसलमानों के मोहल्ले, गली,गाँव में हर औरत सुरक्षित है।

निगाह नीची रखो - ताकि दंगों के बाद ग़ैर मजहब की औरतें इस बात की गवाही दें कि ईमानवाले मर्द, लड़ाई झगड़ों और दंगों में भी औरतों की इज़्ज़त का ख़याल करते हैं।

Saturday, June 2, 2018

मस्जिद-ए-नबवी

मस्जिद-ए-नबवी

हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में इस्लाम के सारे मामलात मस्जिद-ए-नबवी में हल होते थे ।

मस्जिद का इस्तेमाल मुसलमान अपनी जिंदगी से ताल्लुक रखने वाले हर मामलों के मशवरा के लिए करते थे ।

ज्यादातर आहकाम ए नबवी मस्जिद ए नबवी से जारी हुए ।

यहां बाहर के लोग आते थे और इस्लाम के बारे में जानते थे ।

कुछ सहाबी मस्जिद में ही रहते थे ।

इस्लामी निजाम में मस्जिदें मुसलमानों का मरकज़ हुआ करती थी ।

जिसमें मुस्लिम मिलते थे और अपने आपस के हालात का बयां करते थे और मशवरे और एहकाम जारी होते थे ।

मस्जिदों पर ताले नहीं थे मस्जिदों में कारोबार नहीं होता था ।

मस्जिदों में नमाज होती थी और इस्लाम से ताल्लुक रखने वाले अपने मसाइल के हल के लिए मस्जिदों का रुख करते थे ।

आज मस्जिदें बंद रहती हैं सिर्फ नमाजों के वक़त खुलती हैं सिर्फ नमाज होती है ।

इमामों का काम सिर्फ नमाज तक रह गया है ।

आओ हम सब मिलकर हमारे मोहल्ले की हमारे शहर की हमारी गली की मस्जिदों को मस्जिद-ए-नबवी की तर्ज पर बनाएं ।

और हम सब मिलकर अपने इलाके के लोगों को उस से जोड़ें उनके मसाइल को हल करें उनकी मदद करें उनकी दुनियावी मामलात में उनके साथ खड़े हो ।

बैतूल माल बनाएं जिसमें गरीबों बेसहारा लोगों यतीमों विधवाओं तलाकशुदा औरतों बीमारों की मदद करें।

और अपने इलाके के मसाइल को हल करें आपस के झगड़ों को निपटाने में उनकी मदद करें ।

मुसलमानों को दुनिया के अंदर फिर आगे बढ़ने की यही तरतीब है ।

या अल्लाह हमारी मस्जिदों को मस्जिद-ए-नबवी की तर्ज पर बना दे जो भले ही दिखने में सादा हो लेकिन हमारे मुसलमान भाइयों के लिए अपनी परेशानियों अपनी मुसीबतों ,तकलीफों को दूर करना कि करने की जगह हो ।

हर मस्जिद में कुछ 1 लोग इकट्ठा हो एक छोटी सी शूरा बनाएं मशवरा करें और लोगों को मस्जिद के निजाम से जोड़ें जैसा हमारे नबी अकरम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने किया था ।

मस्जिदों का निजाम ऐसा कर दे कि हर मुसलमान अपने हर मामले के लिए मस्जिद का रुख करें ।

अगर नबी से मोहब्बत है अल्लाह से मोहब्बत है तो हमें अपने मुसलमान भाइयों से भी मोहब्बत करना होगी हमें गरीबों , मिस्कीनों से भी मोहब्बत करना होगी हमें जरुरतमंदों से भी मोहब्बत करना होगी ।

आओ हम सब मिलकर हम सब की तकलीफों को दूर करने का जरिया बने।

आमीन

अल्लाह हमारी कोशिशों को कुबूल फरमाए